
बदलते समय की पुकार, हर नारी को मिले पूर्ण अधिकार
इंटरनेशनल महिला दिवस स्पेशल: नारी, औरत, महिला, जननी…. इसी तरह के कई नाम से संबोधित किया जाता है, तो कई बार महिलाओं को गंदी नज़र, गिरे हुए अलफ़ाज़ जैसे- धंधा करने वाली, बाजारू औरत, नचनिया, कोठे की रौनक आदि नामों से भी पुकारा जाता है. लेकिन क्या कभी किसी ने इन महिलाओं का दर्द समझने का प्रयास किया है…. नहीं न… तो चलिए जानते है आज इन महिलाओं के दर्द के बारें में जहां कई बार समाज में उन्हें विभिन्न तरह की नज़रों से जज किया जाता है….
यदि लड़की गरीब घर से हो तो कुछ ऐसा होता है ससुराल वालों का व्यवहार:- समय बदल रहा है, और बदलते समय के साथ कई चीजें भी बदल रही है. लेकिन आज भी कई लोगों की सोच विवाह और गरीब घर की महिलाओं, बेटियों और लड़कियों के लिए वैसी ही है जैसी कई वर्षो पहले थी. जी हां अमीरी और गरीबी का ये टैग आज भी नहीं बदला है, जब कभी भी ये बात सामने आती है की घर के बेटे की शादी करनी है लड़की ढूंढ़नी है, लेकिन ये बात सबसे पहले सामने आती है कि, लड़की अच्छे बड़े घराने से होना चाहिए, पढ़ी हो…. कामकाज आता हो… उसका परिवार आर्थिक रूप से मजबूत हो… ताकि जब भी दहेज़ की मांग की जाए तो वह अपने घर से बोरे भर- भर कर पैसे और जेवर लेकर आए. किसी से कोई भी प्रश्न न पूछे…? लेकिन यदि घर में गरीब घर से बहू लेकर आ भी जाते है तो उसे हमेशा ही नीचा दिखाया जाता है, इतना ही नहीं हर दिन उसे उसके गरीब पिता की बेबसी और माँ को लेकर दस तरह की बातें की जाती है. उसके हमेशा ही ताने दिए जाते है. कहा जाता है- अरे तू…. आखिर अपने घर से लेकर क्या आई है… तेरे माँ-बाप ने हमें दिया ही क्या है…? जा- जाकर घर से मेरे बेटे के लिए गाड़ी मांग, पैसे मांग. जेवर मांग…. ये ला..वो ला..! हमारी लालच मिटा. और यदि ये नहीं मिटा सकती तो हमारे बेटे को छोड़ दे. नहीं तो कही जा कर मर जा. इसी तरह के कई तानों को सहने के बाद भी एक नारी उस घर की चौखट पर हमेशा ही बनी रहती है. वह हमेशा एक ही बात अपने घर वालों से सुनती आई है कि… बेटा- जब तक लड़की की शादी नहीं होती तब तक वह घर की जिम्मेदारी होती है, लेकिन जब उसकी शादी हो जाती है तो उसके ससुराल से केवल उसकी अर्थी ही घर आती है….. और इन्ही सभी बातों को याद करते- करते एक नारी अपना जीवन बिता देती है.